मंडपम से हम थोड़ा ही आगे बढे ही थे कि पामबन ब्रिज आ गया...जिससे रामेश्वरम का टापू जुड़ा हुआ है...
इस हरे-भरे टापू की शक्ल शंख जैसी है। कहते हैं, पहले ये मुख्य भूमि से जुड़ा था शनै शनै लहरों ने बीच में काट दिया ... जिससे वह चारों और पानी से घिरकर टापू बन गया। अब यहाँ 3-4 किमी खाड़ी है।
पूर्व में खाड़ी को नावों से पार किया जाता था। आज से लगभग चार सौ बरस पहले कृष्णप्पा नायकन नाम के एक छोटे से राजा ने इस पर पत्थर का बहुत बड़ा पुल बनवाया। पुराना पत्थर का पुल लहरों की टक्कर झेल नहीं पाया और टूट गया था । फ़िर अंग्रेजो ने ... जर्मन इंजीनियर की देखरेख में उस टूटे पुल को रेल पुल के रुप में परिवर्तित करवा दिया ।
जब हम यहाँ थे संयोग से एक ट्रेन गुजर रही थी बढ़िया नजारा था समुद्र में रेल को देखना .... वर्तमान में यही पुल रामेश्वरम् को शेष भारत से जोड़ता है।यहाँ हिंद महासागर का पानी दिखाई देता है।यहाँ समुद्र में लहरे न के बराबर होतीं हैं । एकदम शांत बहाव को देखकर ऐसा लगा जैसे हम किसी बड़ी नदी को पार कर रहे हों।
यहाँ रुककर हमने कुछ pics ली और बढ़ चले....रामेश्वरम तीर्थ की ओर...
इस हरे-भरे टापू की शक्ल शंख जैसी है। कहते हैं, पहले ये मुख्य भूमि से जुड़ा था शनै शनै लहरों ने बीच में काट दिया ... जिससे वह चारों और पानी से घिरकर टापू बन गया। अब यहाँ 3-4 किमी खाड़ी है।
पूर्व में खाड़ी को नावों से पार किया जाता था। आज से लगभग चार सौ बरस पहले कृष्णप्पा नायकन नाम के एक छोटे से राजा ने इस पर पत्थर का बहुत बड़ा पुल बनवाया। पुराना पत्थर का पुल लहरों की टक्कर झेल नहीं पाया और टूट गया था । फ़िर अंग्रेजो ने ... जर्मन इंजीनियर की देखरेख में उस टूटे पुल को रेल पुल के रुप में परिवर्तित करवा दिया ।
जब हम यहाँ थे संयोग से एक ट्रेन गुजर रही थी बढ़िया नजारा था समुद्र में रेल को देखना .... वर्तमान में यही पुल रामेश्वरम् को शेष भारत से जोड़ता है।यहाँ हिंद महासागर का पानी दिखाई देता है।यहाँ समुद्र में लहरे न के बराबर होतीं हैं । एकदम शांत बहाव को देखकर ऐसा लगा जैसे हम किसी बड़ी नदी को पार कर रहे हों।
यहाँ रुककर हमने कुछ pics ली और बढ़ चले....रामेश्वरम तीर्थ की ओर...
पामबन पुल
पामबन पुल के पहले से |
पामबन पुल के पास बस्ती
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पामबन पुल से गुजरती ट्रेन का चित्र |
क्या नज़ारा था ....... |
शिकार की तलाश में चील |
रामेश्वरम लाइट हाउस |
नरेंद्र भाई ने बताया था कि बांगड़ यात्री निवास रामेश्वरम मे अच्छा रुकने का ऑप्शन है ..हम जब वहां पहुंचे तो करीब 4:00 बजे हुए थे ...यहां बेरिकेटिंग थी ...मंदिर के आस-पास गाड़ियां नहीं जाने देते हैं .. पैदल चलते हुए बांगड़ यात्री निवास गया.. जो कि मंदिर के पिछले गेट के ठीक सामने था और इसके पीछे समुद्र था ... रूम बुक किये और वापस आकर के परिवारजनों को सामान सहित रुम भेज दिया और मैं गाड़ी खड़ी करने के लिए दो किमी दूर पार्किंग में गया.. जिसकी फीस 24 घंटे की 50 रू थी लेकिन उन लोगों ने हम से 80 रुपए चार्ज किए और वहां से वापसी मे टैक्सी नहीं मिली तो मैंने एक अन्ना भाई से लिफ्ट मांगी जिसने बड़ी खुशी से स्वीकार कर लिया और मुझे मंदिर के करीब लाकर के छोड़ दिया ...मैं पैदल आ रहा था ...मैंने देखा एक मैकेनिक वहां पर शंख और सीपी से गणेश भगवान की मूर्ति बना रहे हैं जिसे वह किसी मेटेरियल से एक-एक कर जोड़ रहे थे ..मैंने उससे उनका दाम पूछा तो उन्होंने सिर्फ सौ रुपए बताए .. मैंने उसको खरीदने का मन बना लिया और पूछा कि इतनी जल्दी टूट तो नहीं जाएगी .... मैं नहीं जानता था कि यह पूरी बनी कि नहीं बनी है लेकिन उन्होंने उसको तुरंत पैक करने के बजाए मुझे रोका ....और उसमें कई सारे और आइटम चिपकाये... मैंने उसका खड़े-खड़े पूरा वीडियो बनाया और उनकी आत्मीयता और लगन देखता ही रहा उन्होंने उसको बहुत ही अच्छी तरीके से पैक कर दिया... कारीगर के हाथ से बनी हुई गणेश भगवान की मूर्ति को खरीद कर मैं बहुत ही प्रसन्नता से रूम में पहुंचा ....
गजानन की हाथ से बनाई मूर्ति |
अन्ना की कारीगरी |
धनुष कोटि का प्रोग्राम हमने अगले दिन सुबह के लिए रखा था लेकिन अब यहां पर प्रोग्राम बिल्कुल उल्टा हो गया था ...तो हमारे पास बिल्कुल टाइम नहीं था हम हाथ मुंह धो कर के तुरंत ही बाहर निकले ... गाड़ी हमारी टैक्सी स्टैंड में खड़ी थी ...थोड़ा सा चाय पानी करके हम लोग गाड़ी पर आटो कर पहुंचे ..
गाड़ी के पास ही हमें एक लोकल गाइड 400 रु.मे मिल गया ..हम लोग के पास अब इतना ज्यादा टाइम नहीं था और घूमना भी था.. सुबह हम को रामेश्वरम के दर्शन करके कन्याकुमारी के लिए निकलना था ...तो उसको मेन जगह दिखाने को बोल दिया..उसने .धनुषकोटि के लिए मना किया वो 6 बजे के बाद बंद हो जाता है ..दिन मे भी वहां पर लोकल गाड़ियां ही चलती है क्योंकि रेत मे प्राइवेट गाड़ी नहीं जाती और वह 6:00 बजे के बाद वो भी नहीं चलती ..सबसे पहले वह हम लोग को धनुषकोटि की तरफ ले करके निकला वहां पर विभीषण मंदिर के दर्शन किए .. मंदिर के पास ही रामसेतु था जो अब पूरी तरीके से डूब चुका है श्रीलंका यहां से सिर्फ 18 किलोमीटर दूर था .... .
यही पर सेतुबंध है |
सागर में |
उड़ता पक्षी |
यहाँ सागर शांत था |
हम.जहां तक गाड़ियां जाती हैं वहां तक गए यहां पर समुद्र की लहरें काफी तेज थी.. रोड के राइट साइड मे लहरों को रोकने के लिए पूरी दीवार बना रखी थी ...उस जगह पर फोटो खींचना संभव नहीं हो पा रहा था क्योंकि पानी की छींटे उड़ करके आ रही .टाइम भी कम था क्योंकि रामेश्वरम के सारे मंदिर 7:00 बजे बंद हो जाते हो जाते हैं
धनुष कोटि की ओर जाती सड़क |
सड़क के पास दीवार |
शाम के धुंधलके में |
बहुत तेज लहरें थी यहाँ |
तो हम लोग वापस... शहर की तरफ चल दिए.... यहां पर आ कर सबसे पहले हम लक्ष्मण मन्दिर के दर्शन करने के लिए गए उसके बाद हनुमान मंदिर के दर्शन किए फिर हम लोग राम मन्दिर के लिए गए ..फिर हमने तैरते हुए पत्थर देखे यहां पर मेरे बेटे ने फोटो खींच लिए जो हमारे पास यादगार के रूप में है जबकि वह बहुत साफ नहीं आए हैं .
यहां से हम लोग अब्दुल कलाम आजाद जी के घर गए ...हमने कल्पना कर रखी थी कि एक बड़ी सी हवेली देखने को मिलेगी ऐसा वहां पर कुछ नहीं था एक बहुत सिंपल सा 15 * 30 का मकान था जो कि आम आदमी को भी नसीब है... जब हम लोग गुजरात टूर पर गए थे तो गांधीजी का घर देखा था जिसमें विजिट करने की सुविधा थी... लेकिन यहां पर ऐसा कुछ नहीं था क्योंकि यहां पर उनकी फैमिली रहती है ..कुछेक फोटोग्राफ्स लिए ...अब्दुल कलाम जी के परिवार का तो नहीं जानता लेकिन उनके पड़ोसियों के तो मजे हो गए ...उनके तो भाग्य ही खुल गए क्योंकि उनका घर देखने अधिकतर लोग आते हैं और उनके घर के पास ही माल बना दिये गए हैं ..यहां से खरीदारी कर खाना खाये... अगले दिन सुबह हम लोग को जल्दी उठना था मणि दर्शन जो करने थे ...
जय भोलेनाथ ।।
जय भोलेनाथ ।।
हनुमान मंदिर |
राम जी |
राम जी का मंदिर |
लक्ष्मण कुण्ड |
तैरते हुए पत्थर का मंदिर |
इन्ही पत्थरों से नल नील जी ने सेतुबंध बनाया था |
तैरते हुए पत्थर |
समस्त देवी देवता |
सीताराम जी कि कुण्डलीं |
कलाम जी का आवास |
पास के मॉल के चित्र |