कल हम लखनऊ से झाँसी तक east west कॉरीडोर NH 27 से "
जो गुजरात के पोरबंदर से आसाम के सिल्चर तक फोरलेन है ,आये थे !
फ़िर झाँसी से नरसिंहपुर तक
नॉर्थ साउथ कॉरीडोर NH 44
जो कश्मीर के श्रीनगर से तमिलनाडु के कन्याकुमारी तक फोरलेन जाता है...यहाँ से छिंदवाडा होकर हम नागपुर में फ़िर से NH 44 पर हो लिये ....
जो गुजरात के पोरबंदर से आसाम के सिल्चर तक फोरलेन है ,आये थे !
फ़िर झाँसी से नरसिंहपुर तक
नॉर्थ साउथ कॉरीडोर NH 44
जो कश्मीर के श्रीनगर से तमिलनाडु के कन्याकुमारी तक फोरलेन जाता है...यहाँ से छिंदवाडा होकर हम नागपुर में फ़िर से NH 44 पर हो लिये ....
हिंगनघाट महाराष्ट्र |
जिस पर महाराष्ट्र के तीन जिले नागपुर ,वर्धा और यवतमाल पड़ते हैं..
वर्धा के हिंगनघाट में ही ,जहाँ रूई की बहुत बड़ी मंडी है... हम रात्रि में रुके थे
सुबह 7:45 पर हम गाड़ी में थे...सामने ही हाईवे था....जहाँ चाय नाश्ते की एक दुकान थी ,हम नाश्ते के लिये रुके तो देखा..
गाड़ी के पिछले बायें टायर में हवा कम थी.....सामने ही हवा की दुकान थी...
वर्धा के हिंगनघाट में ही ,जहाँ रूई की बहुत बड़ी मंडी है... हम रात्रि में रुके थे
सुबह 7:45 पर हम गाड़ी में थे...सामने ही हाईवे था....जहाँ चाय नाश्ते की एक दुकान थी ,हम नाश्ते के लिये रुके तो देखा..
गाड़ी के पिछले बायें टायर में हवा कम थी.....सामने ही हवा की दुकान थी...
हम आगे चल पड़े.....यहाँ फोर लेन का काम "पता नहीं कब से "प्रगति पर है तो...इधर-उधर जाना हो रहा था...इसी वजह से हम छिंदवाडा होकर आये थे....तभी रोड के पास ही एक नदी बहती हुई दिखी...और साथ में गाँव में पुल भी...हम को रास्ता दिखा तो उधर चल दिये.....बीच गाँव में ही कुछ लोग हल बनाते दिखे....उनकी फोटो ली
और नदी का रास्ता पूँछ..नदी पर आ गये...मस्त फिल्मों सा नजारा था......कल कल करती नदी बह रही थी...और गाँव की औरतें नदी में कपड़े पटक-पटक धो रही थी....
और सिर पर घड़े रखे पानी भी ले जा रही थी.....इसे पनघट कहते हैं..बच्चों को ये देख कर मजा आ गया...तभी उधर से एक पति पत्नी पूजा की थाल लिये आते दिखे तो उनसे टीका लगवाया और नारियल का प्रसाद लिया...वो अपने खेत की पूजा करके आ रहे थे...जिसके लिये वो प्रतिदिन जाते हैं..
और नदी का रास्ता पूँछ..नदी पर आ गये...मस्त फिल्मों सा नजारा था......कल कल करती नदी बह रही थी...और गाँव की औरतें नदी में कपड़े पटक-पटक धो रही थी....
और सिर पर घड़े रखे पानी भी ले जा रही थी.....इसे पनघट कहते हैं..बच्चों को ये देख कर मजा आ गया...तभी उधर से एक पति पत्नी पूजा की थाल लिये आते दिखे तो उनसे टीका लगवाया और नारियल का प्रसाद लिया...वो अपने खेत की पूजा करके आ रहे थे...जिसके लिये वो प्रतिदिन जाते हैं..
ये यवतमाल महाराष्ट्र जिले का ठोंकी गाँव था...नदी का नाम शायद " खूनी "था !!
रोड पर आये तो देखा कि पास ही एक बैल गाड़ी खड़ी थी और सड़क के किनारे ही किसान बैलों से खेतों की जुताई कर रहे थे..एक के पीछे एक....दिल खुश हो गया किसानों की मेहनत देख कर.. कुछ फोटो लिये...और 10 बजे यहाँ से....हम फ़िर अपनी मंजिल श्रीसैलम के लिये चल पड़े...
पेनगंगा नदी से महाराष्ट्र ख़त्म और तेलंगाना शुरू और यही से बेहतरीन रोड भी....रोड के दोनो तरफ़ गुलमोहर के लाल-लाल फूलों से लदे पेड़..और डिवाइडर पर गुलाबी -सफेद बेलें..
नार्थ साउथ कारीडोर NH 44 तेलंगाना
तेलंगाना के आदिलाबाद ,निर्मल ,निजामाबाद ,कामारेड्डि ,मेडक ,मलकाजगिरी ,हैदराबाद ,जिले nh 44 पर पड़ते हैं जिन्हे पार करना था !
पिछली बार निर्मल से 30 km पहले कुन्टाला वॉटर फॉल के मोड़ से एक किमी आगे .... उन्नाव जिले के एक निवासी के up ढाबे पर खाना खाया था...जो googal map में भी शो कर रहा था और मैंने उसे want to go places की लिस्ट में save भी कर रखा था..
वहीं हमने रुक कर खाना खाया...परदेश में अपने इलाके का आदमी मिल जाये तो बहुत खुशी होती है...वो ठाकुर हैं......बढ़िया काजू करी की सब्जी और दाल के साथ भोजन किया गया...चलने लगे तो देखा...
गाड़ी के उसी टायर में हवा फ़िर कम थी....
मतलब....पंचर....
ठाकुर साहब जबरदस्ती चाय पिलाने की जिद कर रहे थे....और बोले पंचर यही बनवा लो..आगे अनाप शनाप पैसे मांगेंगे...हमने सोचा एक बार हवा डलवा लें तो फ़िर चाय के टाइम पर ठीक करा लेंगे...टाइम बच जायेगा........ट्यूबलेस टायर का यही फायदा होता है...गाड़ी चल जाती है..हैदराबाद से पहले ही हमें गाड़ी ठीक करानी थी क्यों कि....फ़िर एक्सप्रेस वे पर मुश्किल होता...
तेलंगाना के आदिलाबाद ,निर्मल ,निजामाबाद ,कामारेड्डि ,मेडक ,मलकाजगिरी ,हैदराबाद ,जिले nh 44 पर पड़ते हैं जिन्हे पार करना था !
पिछली बार निर्मल से 30 km पहले कुन्टाला वॉटर फॉल के मोड़ से एक किमी आगे .... उन्नाव जिले के एक निवासी के up ढाबे पर खाना खाया था...जो googal map में भी शो कर रहा था और मैंने उसे want to go places की लिस्ट में save भी कर रखा था..
वहीं हमने रुक कर खाना खाया...परदेश में अपने इलाके का आदमी मिल जाये तो बहुत खुशी होती है...वो ठाकुर हैं......बढ़िया काजू करी की सब्जी और दाल के साथ भोजन किया गया...चलने लगे तो देखा...
गाड़ी के उसी टायर में हवा फ़िर कम थी....
मतलब....पंचर....
ठाकुर साहब जबरदस्ती चाय पिलाने की जिद कर रहे थे....और बोले पंचर यही बनवा लो..आगे अनाप शनाप पैसे मांगेंगे...हमने सोचा एक बार हवा डलवा लें तो फ़िर चाय के टाइम पर ठीक करा लेंगे...टाइम बच जायेगा........ट्यूबलेस टायर का यही फायदा होता है...गाड़ी चल जाती है..हैदराबाद से पहले ही हमें गाड़ी ठीक करानी थी क्यों कि....फ़िर एक्सप्रेस वे पर मुश्किल होता...
गाड़ी में हवा फ़िर कम थी तो...रोक कर एक मिस्त्री से पूंछा तो वो बड़ी बेरुखी से सौ रुपये बोला और टायर खोलने बाँधने के अलग 50 रु...
भाषा भी बड़ी घटिया तो हम कुछ आगे बढ़ कर दूसरे मिस्त्री के यहाँ रुके और सामने ढाबे पर चाय पीने लगे...45 मिनट लग गये.....मिस्त्री ने बताया कि पंचर से हवा निकल रही तो डबल हो गया...अगर रुक गया तो ठीक वरना ट्यूब डलवा लेना...
हैदराबाद भारत का एकमात्र शहर है, जिसके चारो तरफ़ एक्सप्रेस वे बाई पास है
वो भी 8 lane....गजब रोड है....जितनी कूबत हो...गाड़ी भगा लो...150-160
हैदराबाद से 27 km पहले ही बाई पास मिल गया....बढ़िया रोड ऊपर से बारिश हो रही थी.....शाम के चार बज रहे थे..
हैदराबाद बाई पास एक्सप्रेस वे के 72 km कब निकल गये पता ही नहीं चला.
भाषा भी बड़ी घटिया तो हम कुछ आगे बढ़ कर दूसरे मिस्त्री के यहाँ रुके और सामने ढाबे पर चाय पीने लगे...45 मिनट लग गये.....मिस्त्री ने बताया कि पंचर से हवा निकल रही तो डबल हो गया...अगर रुक गया तो ठीक वरना ट्यूब डलवा लेना...
हैदराबाद भारत का एकमात्र शहर है, जिसके चारो तरफ़ एक्सप्रेस वे बाई पास है
वो भी 8 lane....गजब रोड है....जितनी कूबत हो...गाड़ी भगा लो...150-160
हैदराबाद से 27 km पहले ही बाई पास मिल गया....बढ़िया रोड ऊपर से बारिश हो रही थी.....शाम के चार बज रहे थे..
हैदराबाद बाई पास एक्सप्रेस वे के 72 km कब निकल गये पता ही नहीं चला.
और हम श्रीसैलम टू लेन NH 765 हाईवे ... पर आ गये....जिसपर तेलंगाना के रंगारेड्डी ,नागरकूर्नूल जिले ..पड़ते हैं....हम लोग आज लगभग 500 km चल चुके थे...यहाँ से श्री सैलम 190 km दूर था...
गूगल मैप 3:30 टाइम दिखा रहा था...
4 बज चुके थे और अँधेरा होने से पहले ही हमको श्रीसैलम पहुँचना था क्यों कि लास्ट के 80 km जंगल और पहाड़ी रास्ता है..हमको ये पता था कि फारेस्ट के लोग रात को जाने नहीं देते थे....बारिश हो रही थी और ट्रैफिक भी था....तभी टोल पर गाड़ी रुकी तो उससे 9 बजे तक रास्ता खुले होने की बात सुनकर राहत मिली....
जंगल आया तो एंट्री करवा कर हम आगे बढे.....अब नल्लामल्ला की पहाडियों के रास्ते स्टार्ट हो गये और साथ में ब्रेकर भी.....जो कि अनगिनत थे हर 100 -200 मीटर के बाद ब्रेकर....
जंगली जानवरों के बचाव का एक उचित प्रयास है ...
पानी की हल्की सी फुहार जारी थी जिससे रोड गीली थी...और गाड़ी की
wind screen पर मिट्टी की छीटें आ रही थी....मेरे सामने का wiper थोड़ा दिक्कत कर रहा था...चलना मुश्किल था...ब्रेकर पर गाड़ी कई बार जोर से उछली...
6:35 पर हम श्रीसैलम टाइगर रिज़र्व के gate के सामने थे....पिछ्ली बार भी मन मारकर निकल गये थे और इस बार भी दिन होता तो शायद हम सफ़ारी करके ही जाते....
7:30 पर कृष्णा नदी पर बना श्रीसैलम डैम आ गया .... जिसका मतलब कि हम करीब आ चुके थे......
.श्रीसैलम में घुसते ही हमने फ्रेश होकर दर्शन करने का निश्चय किया.....और रूम तलाशने लगे....मंदिर के गेस्ट हाउस के बाहर ही एजेंट ने बताया कि यहाँ रूमखाली नहीं......बाहर 1200 में एक ac रूम मिलेगा जिसमें 200 कमीशन मेरा होगा !हमे दो रूम चाहिये होते थे....
मेरा तो रूम लेने का मन था पर अजय भाई ने और देखना मुनासिब समझा....पर मैंने उसका नम्बर ले लिया ....दोनो गेस्ट हाउस वास्तव में फुल थे...फ़िर आगे बढ़कर देखते रहे...पता चला यहाँ कोई प्राइवेट होटेल नहीं....सब अलग अलग ट्रस्ट के ही आश्रय हैं....एक विशेष बात यहाँ भाषा बड़ी समस्या थी.....कोई सही समझ ही नहीं पा रहा था....लिखा भी सब उनकी अपनी भाषा में था....इंग्लीश भी नहीं......दो चार जगह और देखने के बाद....हम फ़िर उसी तरफ़ लौट आये....
दिन भर गाड़ी चलाने के बाद ये एक बिन मतलब की थकाऊ प्रक्रिया थी...हमारे बजट में रूम मिल रहा था...फ़िर भी हम समय खराब कर रहे थे..जबकि अभी हमको दर्शन करना था ....
एक घंटा जाया करने के बाद हमने उस एजेंट को ही फोन किया.... उसने वहीं बुलाया और पीछे गली में ले जाकर बड़ी सी खुली जगह में बने ट्रस्ट का रूम दिलवा दिया......
मंदिर 10 बजे तक ही खुला रहता है...और अब बहुत कम टाइम था जल्दी से फ्रेश होकर हम निकल लिये....गाड़ी पार्क की और gate के पास पहुँचते ही...गेट कीपर ने सामने काउंटर पर एंट्री करवा कर आने को बोला और अजय को अंदर जाने से रोक दिया....क्यों कि वो हाफ पैंट में थे....
मुझे पता था कि दक्षिण के मंदिरों में हाफ पैंट aloud नहीं पर जल्द बाजी में याद नहीं रहा ...खैर अजय को सुबह पूजा करनी थी तो हम एंट्री के लिये काउंटर पर गये...इतने में वहाँ काउंटर बंद हो चुका था क्यों कि टाइम ख़त्म हो चुका था....
हम gate के पास आये तो देखा बाकी सब अंदर थे...मेरी वाइफ भी gate के अंदर थी..अकेले वहीं खड़ी थी और मैं मेरा बेटा गेट के बाहर....
गेट कीपर ताला डाल चुका था......
तभी गेट कीपर आया और ताला खोल एक लड़के को अंदर कर लिया....कई लोग और बाहर थे हम लोग भी उससे अंदर
जाने के लिये कह रहे थे....और साथ ही गेट अपनी तरफ़ खींच रहे थे और वो जोर जोर से गुस्से से अपनी भाषा में बडबडाते हुए अपनी तरफ़ खींच रहा था...हम सारी दुहाई दे रहे थे कि....भइया हम बहुत दूर लखनऊ से आये हैं..ये मेरी पत्नी हैं जो कि अंदर हैं ..भाई अहसान होगा... हमें भी जाने दो....पर वो बन्दा नहीं मान रहा था गेट अंदर की ओर खींचे जा रहा था ...इसी खींचतान के बीच मंदिर का ही एक कर्मचारी..जो बाहर ही था आया और हम लोगो से गेट छोड़ने को बोला....गेट छूटते ही अंदर वाले ने....गेट अपनी तरफ़ खींचते हुए गेट खोल दिया......
अब पता चला कि वो गेट खोल ही रहा था और उल्टे हम बंद कर रहे थे....हँसते हँसते हम लोट पोट हो गये.....
जंगल आया तो एंट्री करवा कर हम आगे बढे.....अब नल्लामल्ला की पहाडियों के रास्ते स्टार्ट हो गये और साथ में ब्रेकर भी.....जो कि अनगिनत थे हर 100 -200 मीटर के बाद ब्रेकर....
जंगली जानवरों के बचाव का एक उचित प्रयास है ...
पानी की हल्की सी फुहार जारी थी जिससे रोड गीली थी...और गाड़ी की
wind screen पर मिट्टी की छीटें आ रही थी....मेरे सामने का wiper थोड़ा दिक्कत कर रहा था...चलना मुश्किल था...ब्रेकर पर गाड़ी कई बार जोर से उछली...
6:35 पर हम श्रीसैलम टाइगर रिज़र्व के gate के सामने थे....पिछ्ली बार भी मन मारकर निकल गये थे और इस बार भी दिन होता तो शायद हम सफ़ारी करके ही जाते....
7:30 पर कृष्णा नदी पर बना श्रीसैलम डैम आ गया .... जिसका मतलब कि हम करीब आ चुके थे......
श्री सैलम टाइगर रिजर्व
श्री सैलम डैम पर बना पॉवर हाउस
श्री सैलम डैम .श्रीसैलम में घुसते ही हमने फ्रेश होकर दर्शन करने का निश्चय किया.....और रूम तलाशने लगे....मंदिर के गेस्ट हाउस के बाहर ही एजेंट ने बताया कि यहाँ रूमखाली नहीं......बाहर 1200 में एक ac रूम मिलेगा जिसमें 200 कमीशन मेरा होगा !हमे दो रूम चाहिये होते थे....
मेरा तो रूम लेने का मन था पर अजय भाई ने और देखना मुनासिब समझा....पर मैंने उसका नम्बर ले लिया ....दोनो गेस्ट हाउस वास्तव में फुल थे...फ़िर आगे बढ़कर देखते रहे...पता चला यहाँ कोई प्राइवेट होटेल नहीं....सब अलग अलग ट्रस्ट के ही आश्रय हैं....एक विशेष बात यहाँ भाषा बड़ी समस्या थी.....कोई सही समझ ही नहीं पा रहा था....लिखा भी सब उनकी अपनी भाषा में था....इंग्लीश भी नहीं......दो चार जगह और देखने के बाद....हम फ़िर उसी तरफ़ लौट आये....
दिन भर गाड़ी चलाने के बाद ये एक बिन मतलब की थकाऊ प्रक्रिया थी...हमारे बजट में रूम मिल रहा था...फ़िर भी हम समय खराब कर रहे थे..जबकि अभी हमको दर्शन करना था ....
एक घंटा जाया करने के बाद हमने उस एजेंट को ही फोन किया.... उसने वहीं बुलाया और पीछे गली में ले जाकर बड़ी सी खुली जगह में बने ट्रस्ट का रूम दिलवा दिया......
मंदिर 10 बजे तक ही खुला रहता है...और अब बहुत कम टाइम था जल्दी से फ्रेश होकर हम निकल लिये....गाड़ी पार्क की और gate के पास पहुँचते ही...गेट कीपर ने सामने काउंटर पर एंट्री करवा कर आने को बोला और अजय को अंदर जाने से रोक दिया....क्यों कि वो हाफ पैंट में थे....
मुझे पता था कि दक्षिण के मंदिरों में हाफ पैंट aloud नहीं पर जल्द बाजी में याद नहीं रहा ...खैर अजय को सुबह पूजा करनी थी तो हम एंट्री के लिये काउंटर पर गये...इतने में वहाँ काउंटर बंद हो चुका था क्यों कि टाइम ख़त्म हो चुका था....
हम gate के पास आये तो देखा बाकी सब अंदर थे...मेरी वाइफ भी gate के अंदर थी..अकेले वहीं खड़ी थी और मैं मेरा बेटा गेट के बाहर....
गेट कीपर ताला डाल चुका था......
तभी गेट कीपर आया और ताला खोल एक लड़के को अंदर कर लिया....कई लोग और बाहर थे हम लोग भी उससे अंदर
जाने के लिये कह रहे थे....और साथ ही गेट अपनी तरफ़ खींच रहे थे और वो जोर जोर से गुस्से से अपनी भाषा में बडबडाते हुए अपनी तरफ़ खींच रहा था...हम सारी दुहाई दे रहे थे कि....भइया हम बहुत दूर लखनऊ से आये हैं..ये मेरी पत्नी हैं जो कि अंदर हैं ..भाई अहसान होगा... हमें भी जाने दो....पर वो बन्दा नहीं मान रहा था गेट अंदर की ओर खींचे जा रहा था ...इसी खींचतान के बीच मंदिर का ही एक कर्मचारी..जो बाहर ही था आया और हम लोगो से गेट छोड़ने को बोला....गेट छूटते ही अंदर वाले ने....गेट अपनी तरफ़ खींचते हुए गेट खोल दिया......
अब पता चला कि वो गेट खोल ही रहा था और उल्टे हम बंद कर रहे थे....हँसते हँसते हम लोट पोट हो गये.....
अब थोडा श्रीसैलम के बारे में भारत में बारह विशेष ज्योतिर्लिंग हैं जिनमे से एक श्रीमल्लिकार्जुन, श्रीशैलम में है,
शिवजी के स्वरूप को यहाँ श्री मल्लिकार्जुन स्वामी कहा जाता है।
साथ ही यहां शक्तिपीठ भी है जहाँ देवी भ्रमरंभा (Bhramaramba) की उपासना की जाती है यह स्थान विशेष है क्यों कि
यह भारत का एक मात्र तीर्थ स्थल है जहाँ ज्योतिर्लिंग और शक्तिपीठ एक ही स्थान पर है।
शिवजी के स्वरूप को यहाँ श्री मल्लिकार्जुन स्वामी कहा जाता है।
साथ ही यहां शक्तिपीठ भी है जहाँ देवी भ्रमरंभा (Bhramaramba) की उपासना की जाती है यह स्थान विशेष है क्यों कि
यह भारत का एक मात्र तीर्थ स्थल है जहाँ ज्योतिर्लिंग और शक्तिपीठ एक ही स्थान पर है।
अंदर बिल्कुल भीड़ नहीं थी हमको ...
भोले बाबा के विधिवत दर्शन मिले और उसके बाद हमने , देवी माँ के दर्शन भी किये जो पिछली बार जानकारी न होने से छूट गये थे...!!
मंदिर से बाहर निकल कर हम खाने के होटल पर आ गये...जिसे एक अम्मा चला रही थी.....वहाँ हमने ऑर्डर कुछ दिया और सर्विस किसी और डिश की हुई....भाषा यहाँ भी आड़े थी....खैर हमने जो नूडल्स मंगाये थे वो बेहतरीन थे पर तीखे बहुत थे....आंध्र में मिर्च पैदा भी खूब होता है तो उसी हिसाब से खाते भी हैं....दो तीन बार मीठी सास मिलाते देख अम्मा बड़बड़ाते हुई बोतल ही उठा ले गयी....हम लोग हँस पड़े ....कोई मीठी डिश तो थी ही नहीं तो सामने के स्टोर से चाकलेट..कोल्डड्रिंक और गुड़ मूँगफली की चिक्की खरीद हम रूम की ओर चल दिये....
भोले बाबा के विधिवत दर्शन मिले और उसके बाद हमने , देवी माँ के दर्शन भी किये जो पिछली बार जानकारी न होने से छूट गये थे...!!
मंदिर से बाहर निकल कर हम खाने के होटल पर आ गये...जिसे एक अम्मा चला रही थी.....वहाँ हमने ऑर्डर कुछ दिया और सर्विस किसी और डिश की हुई....भाषा यहाँ भी आड़े थी....खैर हमने जो नूडल्स मंगाये थे वो बेहतरीन थे पर तीखे बहुत थे....आंध्र में मिर्च पैदा भी खूब होता है तो उसी हिसाब से खाते भी हैं....दो तीन बार मीठी सास मिलाते देख अम्मा बड़बड़ाते हुई बोतल ही उठा ले गयी....हम लोग हँस पड़े ....कोई मीठी डिश तो थी ही नहीं तो सामने के स्टोर से चाकलेट..कोल्डड्रिंक और गुड़ मूँगफली की चिक्की खरीद हम रूम की ओर चल दिये....
मैं दो दिन में 1787 km गाड़ी ड्राइव कर चुका था तो सुबह देर तक हमको आराम करना था और अजय भाई को अभिषेक करके आ जाना था..
फ़िर चेन्नई की ओर प्रस्थान..!!
फ़िर चेन्नई की ओर प्रस्थान..!!
आपकी यह यात्रा सम्पूर्ण होने के बाद एक बार फिर से पढनी होगी।
ReplyDeleteजी भाई जरूर पढ़े और सुझाव अभी से ही दें कि क्या add करते हुए लिखें और क्या avoid करें !!
ReplyDeleteबहुत ही बढ़िया यात्रा विवरण संतोष भाई जी अगले लेख का इंतज़ार रहेगा
ReplyDeleteलोकेंद्र भाई thanku
Deleteव्वा शानदार यात्रा वृतान्त संतोषभाई, एकदम प्रोफेशनल ब्लॉगर, हैदराबाद बायपास सचमे शानदार रोड है, श्रीशलम रोड पे ब्रेकर तो पूछो ही मत इनके बारे में,
ReplyDeleteधन्यवाद भाई
Deleteआप भी घूमें हो उधर !!
श्रेशैलम गया हूं, वहाँ से तिरुपति बालाजी गया था
Deleteबहुत ही बढ़िया यात्रा विवरण संतोष भाई जी अगले लेख का इंतज़ार रहेगा
ReplyDeleteSinha bhai thanku
DeleteThanku bhai
Deleteगजब मिश्रा जी। मज़ा आ गया
ReplyDeleteAnil bhai thanku
ReplyDeleteशानदार यात्रा संतोष । सड़के अछ्छी हो तो गाड़ी चलाने का मजा दुगना हो जाता है।आगे की क़िस्त के इंतजार में। ओर हा ,एक बात और कहानी थी कि जब भी नई पोस्ट लिखो तो उसका लिंक पुरानी पोस्ट पर जरूर दे ताकि पहले भाग से पढ़ने वालों को सुविधा रहे।
ReplyDelete