Tuesday, August 1, 2017

महाबलीपुरम ,कांचीपुरम /-day 4 --11जून 17

3:25 पर महाबलीपुरम जिसे ममाल्लापुरम भी कहते हैं ,पहुँच गये । ये चेन्नई से 55 किमी दूर है ,ये सातवीं शताब्दी मे पल्लवों की राजधानी हुआ करती थी, ये अपने राजसी मंदिर और खूबसूरत समुद्र तटों के कारण पूरे विश्व मे प्रसिद्ध है ।3:30 पर हम शोर टेंपल पर थे ।
यह मंदिर पल्लव राजवंश के  समय का है तब  महाबलीपुरम एक व्यापारिक बंदरगाह हुआ करता था।मंदिर का निर्माण 700-728 ईस्वी के बीच किया गया था। 2004 में आयी सुनामी से मंदिर के प्रांगण को काफी नुकसान हुआ पर मुख्य मंदिर सुरक्षित रहा ...ईश्वर है ...हाल के सालों में मंदिर के आगे समुद्र की तरफ पत्थरों की एक दीवार बनाई गई है, ताकि समुद्र के कटाव के कारण इस मंदिर को अधिक नुकसान ना हो। 1984 में इस मंदिर को यूनेस्को वैश्विक धरोहर स्थल घोषित कर दिया गया।  जिससे यहाँ विदेशी पर्यटक खूब आते हैं । वैभव ने तुर्की के एक नौजवान रिदूआन के साथ pic भी खिंचवाईं ।2004 में आई सुनामी के कारण मंदिर का कुछ हिस्सा नष्ट हो गया।अर्जुन पेनेन्स और पांडव रथ कृष्ण मन्डपम यहाँ अन्य दर्शनीय स्थल  हैं ।पर धूप तेज थी और हम थक भी गये थे तो अगली बार के लिये छोड़ दिया ...क्यों कि चेन्नई  भी हमने नही घूमी थी।
... थोड़ी देर आराम ज़रूर किया ।बेटा अपनी माँ गोद मे सिर रख लेट गया ।बाहर आते हुए अजय भाई ने चिप्स और कोल्डड्रिंक ली ।
मुझे एक आदमी स्टील के बने बक्से मे भुट्टे बेचता दिखा ,40 के दो लिये ...वो उस मशीन से समूचे भुट्टे उबाल रहा था । भुट्टे मीठे थे जिन्हे नमक नींबू के साथ खाया ।शाम हो रही थी तो पार्किंग मे भीड़ बढ़ गयी थी ।गाड़ी निकाली और फ़िर चल दिये...दक्षिण की काशी कांचीपुरम ।

शोर टेम्पल महाबलीपुरम


शानदार कलाकृति

अद्भुत्








समुद्रतट



 

तुर्की के रिदुआन के साथ

बहुत थक गये थे


इससे अच्छी जगह कोई नहीं


कांचीपुरम...जो यहाँ से 70 km पर थी।
रास्ते मे हमे तमिलनाडु के लोकल बाजार दिखे जहाँ हरी सब्जियाँ और दैनिक उपभोग की वस्तुयें ग्रामीण बेचने आते हैं । एक जगह गाड़ी रोक हमने वहाँ के लोकल डिश से शाम का नाश्ता किया। यहाँ इमली से बनी रसम का खूब उपयोग होता है ...मीठे पराठे से बनाते हैं,जिनको पूरण पोली बोलते हैं और मंचूरियन सा कुछ था।

लोकल मार्केट



 

इमली कि बनी रसम


तमिल मंचूरियन


पूरण पोली





कांची पलार नदी के किनारे स्थित है, यह मंदिरों  एवम अपनी कांजीवरम साड़ियों  के लिये प्रसिद्ध है , यहाँ की साड़ी  हाथो से बुनी  उच्च कोटि की  होती है।
उत्तरी तमिलनाडु में स्थित कांचीपुरम भारत के सात सबसे पवित्र पुरियों में से एक माना जाता है....अन्य पुरी हैं अयोध्या ,मथुरा, काशी ,द्वारका, उज्जैन और हरिद्वार । हिन्दुओं का यह पवित्र तीर्थस्थल हजार मंदिरों के शहर के रूप में चर्चित है। आज भी कांचीपुरम और उसके आसपास 126 शानदार मंदिर देखे जा सकते हैं  !!
7 बजे पहले हम पहुँचे कामाक्षी मंदिर !!
कामाक्षी अम्मा मन्दिर...देवी त्रिपुर सुंदरी रूप में देवी कामाक्षी को समर्पित है  इसके साथ आदि गुरु शंकराचार्य का नाम भी जुडा़ है। यह मदुरई के मीनाक्षी मन्दिर, तिरुवनैकवल के अकिलन्देश्वरी मंदिर के साथ साथ वाराणसी के विशालाक्षी मन्दिर समेत देवी पार्वती का मुख्य मन्दिर है।
यहां पद्मासन में विराजमान देवी की भव्य मूर्ति है

कामाक्षी मंदिर का बाहर से लिया चित्र



सतम्भ


मुख्य मंदिर






मुख्य गोपुरम की अन्दर से ली तस्वीर



दर्शन से बाहर निकलते ही एक 15-16 साल का लड़का हमको एकमबारानाथार मंदिर का रास्ता बताने लगा और बताया कि उसकी  वही पर साड़ी की दुकान है। मैं मंदिर तक ले चलूँगा...दर्शन करके देख लेना....आठ बजे तक ही मंदिर खुला रहता है....।
एकमबारानाथर मंदिर-
पांच भूतों से बने इस शरीर को शुद्ध करने के लिए दक्षिण भारत के योगियों ने पांच मंदिर बनाये थे –
पृथ्वी, वायु ,अग्नि, जल आकाश जो पञ्चमहाभूत माने गए हैं  जिनसे सृष्टि का प्रत्येक पदार्थ बना है ,लोकप्रिय तौर पर इन्हें क्षिति-जल-पावक-गगन-समीरा कहते हैं.....यानि संसार को रचने वाले पाँच तत्वों के मंदिर, जिनका निर्माण मानव चेतना को विकसित करने के एक माध्यम के रूप में किया गया। हर मंदिर का निर्माण पांच तत्वों में से एक तत्व के लिए किया गया। श्रीकालहस्ती (आंध्रप्रदेश )में मंदिर वायु तत्व , कांचीपुरम में पृथ्वी तत्व , तिरुवन्नामलाई में अग्नि तत्व ,
चिदंबरम में आकाश तत्व और तिरुवनाईकवल में जल तत्व  के लिए मंदिर का निर्माण किया गया।
पांचों मंदिरों का निर्माण योगिक विज्ञान के अनुसार किया गया। ये मंदिर एक दूसरे के साथ एक खास किस्म के भौगोलिक संरेखण में हैं, जिससे कि उनके द्वारा पैदा की जाने वाली अपार संभावनाओं का असर पूरे क्षेत्र पर हो सके।
इस मंदिर को भी पल्लवों ने बनवाया था ,बाद में इसका पुर्ननिर्माण चोल और विजयनगर के राजाओं ने करवाया ,11 खंड़ों का यह मंदिर दक्षिण भारत के सबसे ऊंचे मंदिरों में एक है साथ ही यहां का 1000 पिलर का मंडपम भी खासा लोकप्रिय है,यहीं पार्वती जी ने आम के पेड़ के नीचे रेत के शिवलिंग की तपस्या कर शिव जी को प्रसन्न किया था...
ये हमारा पंचभूत तत्वों के मंदिरों का दूसरा दर्शन था 2016 में आंध्रप्रदेश की यात्रा में मैं श्री कालहस्ती में वायु लिंगम के दर्शन कर चुका था....
दर्शन कर हम बाहर आये...
उस बच्चे की दुकान से एक दो साड़ियां ली
और चल पड़े वेल्लोर की ओर जहाँ हमें रात्रि विश्राम कर सुबह महालक्ष्मी जी के स्वर्ण मंदिर के दर्शन करने थे...!!
जय भोले नाथ !!

मुख्य मंदिर एकाम्ब्रानाथार




मुख्य गोपुरम


नंदी जी


विशाल दरवाजा

13 comments:

  1. महाबलीपुरम मैंने नहीं देखा है लेकिन अगली बार जब भी साउथ की यात्रा होगी, तो जरूर देखेंगे
    आपके लेख में लेखन के साथ साथ फोटो भी बहुत शानदार है दिल लगाकर लिखते रहिए हम पढ़ते रहेंगे

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    1. धन्यवाद भाई जी ।
      हौसला बढ़ाने के लिये ।

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    2. धन्यवाद भाई जी ।
      हौसला बढ़ाने के लिये ।
      महाबलीपुरम बहुत सुंदर है ज़रूर घूमियेगा ।

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  2. बहुत ही शानदार यात्रा विवरण

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    1. धन्यवाद लोकेँद्र भाई

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  3. क्या बात है, बिल्कुल प्रोफेशनल की तरह लिखा है....सुपरX

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  4. बहुत बढिया मिश्रा जी।

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  5. बहुत बढ़िया संतोष जी👍
    ऐसे ही हमें भी अपने साथ यात्रा कराते रहिये 😊👍

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  6. इमली की रस्म ... और ये जगह आपका ब्लॉग पढ़ने के बाद मेरी लिस्ट में आ गयी है .. बहुत ख़ूब

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    1. ड्राइविंग का मजा भी दक्षिण भारत की यात्रा में मिलेगी ।

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